Saturday 3 March 2018

गइयै कोन उछाही मे / अंगिका कविता - कैलाश झा किंकर

अंगिका ग़ज़ल
गइयै कोन उछाही मे 
गाय बिकल चरवाही मे

दोसर कोनो काम करब
की रक्खल हरवाही मे 

हिनका- हुनका की कहियै
दुनियें छै खरखाही मे 

मुद्दै-मुद्दालय ठामे
मरलै लोग गवाही मे 

गत्तर-गत्तर टूटै छै
रहियै घो'र उड़ाही मे 

केना पहुँचियो' बाबा हो 
जाम लगल भिड़ियाही मे ।
.....
कवि- कैलाश झा किंकर



फगुआ के' रंग में लागै छै दुनिया फगुऐलै / फगुआ झूमर - कैलाश झा किंकर

फगुआ झूमर


फगुआ के' रंग में लागै छै दुनिया फगुऐलै

हम्मर भैया के कनिया फगुऐलै



भैया सुतल छै बगले में लेकिन चैट-चैट
खेलै भौजी अधरतिया चैट-चैट



चढ़लै जे फागुन भौजी करै छै मह-मह-मह
महकै घोरो'-दुअरिया मह-मह-मह 



भरलो' उमंग से' रँगलो'छै भौजी फगुआ मे
भैया ताकै छै सुरतिया फगुआ मे



शिक्षा-साहित्य से' उमगित खगड़़िया हँस्सै छै
नाची-झूमी के' खगड़़िया हँस्सै छै।
.....
कवि- कैलाश झा किंकर









लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

1. गजल  ( मुख्य पेज पर जायें -  bejodindia.in  /  हर 12 घंटे पर देखते र हें -  FB+ Bejod India ) लौटी क आबै छै फँसलो बिहा...

10 Most popular posts