Saturday 3 March 2018

गइयै कोन उछाही मे / अंगिका कविता - कैलाश झा किंकर

अंगिका ग़ज़ल
गइयै कोन उछाही मे 
गाय बिकल चरवाही मे

दोसर कोनो काम करब
की रक्खल हरवाही मे 

हिनका- हुनका की कहियै
दुनियें छै खरखाही मे 

मुद्दै-मुद्दालय ठामे
मरलै लोग गवाही मे 

गत्तर-गत्तर टूटै छै
रहियै घो'र उड़ाही मे 

केना पहुँचियो' बाबा हो 
जाम लगल भिड़ियाही मे ।
.....
कवि- कैलाश झा किंकर



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