Friday 29 May 2020

लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

1. गजल 

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लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी
सुख के दुआरी स भुखलो बिहारी।

मारै ल छक्का बडी दूर गेलै
किस्मत के बैटिंग म हुकलो बिहारी।

गाड़ी न घोड़ा न कोनो सबारी
जिनगी बचाबै म थकलो बिहारी।

सबटा कमैलो धमैलो बुडैलो
आंखो छै आंखीं म धसलो बिहारी।

बक्सा पिटारी प बुतरू सवारी
देखी बिहारी क हसलो बिहारी।
.........
(फइलात फइलात मफऊल फेलुन
२२१ २२१ २२१ २२)
.......


2. दोहा 

अंग अंगिका माय के, बाइस जिला बथान
घूमैं देश विदेश में, बेटा सब रथवान।।

आदि कवि शुरूआत के, सरहपाद कुलधाम
राहुल सांकृत्यायनें, रखै अंगिका नाम।।

प्यारी पांच करोड़ के, भाषा मं गुण चार
रसगर, मिठगर, शोधलों, अवतारी दमदार।।

सुतभो ते के जोगथौं, गौरवशाली ताज
लूझै ले दम साधनें, अडियैलो छै बाज।।
.......


3. गीत 


सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।
केकरा पे सब रंग डालै किसनमां 
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।

खेतों मे डालै, खम्हारी पे डालै
रैची के खुल्लो दुआरी पे डालै
चिकना के पकडै मुरेठा किसनमां
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।

सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै सिपहिया
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।
थाना में डालें, कि हाजत में डालें
टोपी पहन रंग डाले सिपहिया
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।

सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै बटोहिया
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।
पगड़ी पे डालै, मुरेठा पे डालै
रगडी के माथा म डालै बटोहिया
सर र- र- र- र-र रा  रंग डालै।।
.........

कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
कवि का ईमेल आईडी -  skp11061@rediffmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी- editorbejodindia@gmail.com

Saturday 16 May 2020

कानैं, सौसे दुनिया अखनी, भोकरी-भोकरी / कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर

कोरोना गीत 

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कानैं, सौसे दुनिया अखनी, भोकरी-भोकरी..
मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी।

चीन म जनम होलै, चीनें में जुवान हो
जिनगी हसोती लेलकै, विदेशी हैवान हो

भागे लागलै लोग, छोड़ी-छोडी़ नौकरी
मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी।

थपरी बजैलियै हो, थरियो बजैलियै
नाक-मुंह झापै लेली, जालियो बनैलियै

कानै ! दूर रही नूनियां, हकरी-हकरी
मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी।

डाक्टर-नर्स केरो, खतरा मं जान हो
सिपाही के साथ, सरकारो परेशान हो

लॉक में छै भूखली, बकरी-छकरी
मारै कोरोना झमारी के,पकरी पकरी।

आपनों ईलाज आबै आपन्हैं से करबै
काम-काज चालू करी, बनी-ठनी रहबै

कोरोना समेंटतै, हो झोला-झकरी
मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी।
....
कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
कवि का ईमेल आईडी - skp11061@rediffmail.com
पता - अंगलोक, पार्वती मिल सुल्तानगंज
भागलपुर-८१३२१३ (बिहार)
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Sunday 5 April 2020

घरे मे रहबै कुछ दिन आर - कोरोना पर केन्द्रित

 बाल-गीत

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दुक्कां दू, दू दूनी चार ।
घरे मे रहबै कुछ दिन आर ।।

कथी ले' बाहर अभी निकलबै
घरे मे खेलबै घरे मे पढ़बै
सर्दी,खाँसी ,कफ के' संगे-
कोरोना के सगरो बुखार।

पैन गरम तनि करिहें गे माय
साबुन दे ते' लेबै नहाय 
सर्फ-सफाई कैलियो सगरो-
चमकै छौ सौंसे घर-द्वार ।

एक्को वायरस घुसै नै घर मे
पसरै घर से' गाँव शहर मे
हाथे मे सबके' जिनगी समैलै-
मुँहें मे लगबै छी अब किबार ।
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@कैलाश झा किंकर

लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

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