कोरोना गीत
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कानैं, सौसे दुनिया अखनी, भोकरी-भोकरी..
मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी।
चीन म जनम होलै, चीनें में जुवान हो
जिनगी हसोती लेलकै, विदेशी हैवान हो।
भागे लागलै लोग, छोड़ी-छोडी़ नौकरी
मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी।
थपरी बजैलियै हो, थरियो बजैलियै
नाक-मुंह झापै लेली, जालियो बनैलियै।
कानै ! दूर रही नूनियां, हकरी-हकरी
मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी।
डाक्टर-नर्स केरो, खतरा मं जान हो
सिपाही के साथ, सरकारो परेशान हो।
लॉक में छै भूखली, बकरी-छकरी
मारै कोरोना झमारी के,पकरी पकरी।
आपनों ईलाज आबै आपन्हैं से करबै
काम-काज चालू करी, बनी-ठनी रहबै।
कोरोना समेंटतै, हो झोला-झकरी
मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी।
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कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
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पता - अंगलोक, पार्वती मिल सुल्तानगंज
भागलपुर-८१३२१३ (बिहार)
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