Wednesday 26 June 2019

यहे छेकै मोर पिया / कवि - राजकुमार भारती

यहे छेकै मोर पिया


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केतना जे अच्छा छै
जब जब बोलाबै छौ
दै हमरा गच्चा छै
रोबे जे बबुआ छै
कानै जे बचिया छै
देखै ले पप्पा कै
तरसै सब बचबा छै

कम्बै परदेशबा छै
भेजै सनेसबा छै
मिट्ठा मिट्ठा बात
करै मोबैलबा छै
काम आरू धंधा में
दिन केनौह कटै छै
रात के अंधेरिया मे
याद बड्डी सतबै छै
तरसै छी  बरसै छी
बड़ी दुख पाबै छी

कोशी सहरसा के
मगध तिरहुतिया के
अंग परदेशबा और
जवान भोजपुरिया के
हाल सबके एक्के छै
कैनियन और दुल्हिन के
नयकी पुरनकी के
आरू दुलरैती के
तरसै छै खूब जिया
तरसै छै खूब जिया
यहे छेकै मोर पिया
यहे छेकै मोर पिया.


लगै छै ऐसने जैसन सभ्भे नरभसाईये गेलै

दुलहिन छै पलंग पे सूतल
दुल्हा करै छै झाड़ू बर्तन
जखनी बचबा छै कानै
हुनी तअ हुनका के खोजै
पूछै जी कन्डे गेलोह
जरा बबुआ के लहोअ
हे हो छौड़बा के बाबू
करो ऐकरा पर काबू
तेन्टा नीम्मक लेअ आबो
सब्जी भी काटिये दहोअ
हमरा गोर मे दरद छै
रोटियो बनाईये लिहोअ
सबके घर एक्के तमाशा
कैसन अईलै जमाना
जूत्ता सिलाई से तअ
चंडी के पाठ करै तक
मरद बेचारा के तअ करेये होय छै
हित नाता मे बात जे फैललै
दुल्हा सकपकाईये गेलै
लगै छै ऐसने जैसन सभ्भे नरभसाईये गेलै

कैसन गुटखा खबैय्या
सगरे थूक से घिनाबै भैय्या
देखोह ई नाया फेकरा
कहभो तोय केकरा केकरा
दिनभर उपवास करै छै
ओकरो मे गुटखा भी खाय छै
बड्डी सब मुॅह लबरा छै
पूछला पे ऊ ऊ करे छै
जहाॅ मन वहाॅ पर ई
पाव पाव भर थूक फेकै छै
कि पढलका कि मुरखबा
सब बकलोल होईये गेलै
लगै छै ऐसने जैसन सभ्भे नरभसाईये गेलै

भाषणबाजी मे देखो
कैसन समाॅ बाॅधै छै
बोले छै मोध के जैसन
अंधभक्त लोग सब भी
जुटै मधुमक्खी जैसन
ढोंगीये तअ पूजल जाय छै
सीधका बदनाम हुऐ छै
बुधियार लजाईये जाय छै
लोग सब अंधराईये जाय छै
कैसन कैसन कुकर्मी
चलबै अप्पन मनमरजी
बड़ बुजुर्ग त बोलै जे छै
उहाॅ देर छै अंधेर नै छै
नैतिक पतन ते देखोह
कत्ते के होईये गेलै
लगै छै ऐसने जैसन सभ्भे नरभसाईये गेलै.
.....
कवि- राजकुमार भारती 
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Wednesday 19 June 2019

बुतरू-तुतरू (अंगिका कविता) / कवि - राजकुमार भारती

जखनी हम बुतरू छेलियै



जखनी हम बुतरू छेलियै
तुतरू ले कानै छेलियै

भोरे भी हाँस्सै छेलियै
साँझे भी खेलै छेलियै
झौगरी ऊखाड़ै छेलियै
भुट्टा भी तोड़ै छेलियै
खेत खलिहानमा में
मजा ऊड़ाबै छेलियै
जखनी हम बुतरू छेलियै
तुतरू ले कानै छेलियै

इसकूल मे पढै छेलियै
सेवा भी करै छेलियै
कभी कभी मासब से
मारो भी खाईये छेलियै
आटा पिसाबै छेलियै
भुन्जा भुंजाबै छेलियै
मैय्यो आरू बाबू के
कहना ते मानै छेलियै
जखनी हम बुतरू छेलियै
तुतरू ले कानै छेलियै

केतना मस्ती करलियै
केतना कस्ती चढलियै
आबे जब सोचै छियै
याद सभ्भे आबे लगलै
बहुते पछताबै छियै
चुप्पे चुप रोयै छियै
दिन ऊ कहाँ गेलै
दशा ई कैसन भेलै
कभी कभी मन छै करै
खुभ्भे हम बैठौ कानी
फेरू होय जाँअ हम बुतरू
कोय दिये लानी तुतरू

फेरू होय जाँअ हम बुतरू
कोय दिये लानी तुतरू।
...
कवि - राजकुमार भारती 
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Monday 10 June 2019

हे हो भूख मेटाबै वाला, पेट के आग धधाबो नय / सुधीर कुमार प्रोग्रामर के अंगिका कविता, गीत आ ग़ज़ल

करिया दाग लगाबो नय



हे हो भूख मेटाबै वाला, पेट के आग धधाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।

कल्पै माय कटोरा लेने, पेट पकड़ने सेहरी पर
टूक टूक ताके छै रोटी ले, विश्व बैंक के देहरी पर
सत्तर साल के आजादी में, जरलो साग बनाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।

सीमा पर टुह-टूह रंग बेटा, टटका लहू जराबै छै
बड़का के रक्षा में छोटका, रोजे-रोज मराबै छै
जोड़ घटाव गुणा सब सिखलों, उल्टा भाग पढाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।

विदेशी हर माल पे कीमत साठ गुणा सटबाबै छै
हमरा पटियाबै के लेली कूपन भी बटबाबै छै
बापू के चरखा बोलै, चटखा के राग भुलाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी पर करिया दाग लगाबो नय।

हमरा पेरी के आफिस के, बाबू तेल चुआबै छै
एक काम फ़रियाबै खातिर, साले-साल झुलाबै छै
बहिरा बोली आफिसर के, बिषधर नाग बनाबो नय
गाँधी के उजरो धरती पर करिया दाग लगाबो नय।


अंगिका गजल

सुनो' बच्चे गजल छै
मगर अच्छे गजल छै

बहर के चोंच छोटो'
लगै कच्चे गजल छै

कहै हुलसी भतीजी
हमर चच्चे गजल छै

हकारो' झूठ के नय
अहो सच्चे गजल छै

हलां खोपा गुथाबो
पुरा लच्छे गजल छै।


अंगिका गजल 

कहै दादा स' इक पोता कि बाबू याद आबै छै
कहीने ने हमर मैया अहो' सिन्दूर लगाबै छै।

खनाखन हाथ में चूड़ी बजै छै रोज काकी के
हमर मैया के हांथो में अहो मठिया सुहाबै छै।

जों गहलै छै कभी कौआ ते ढेला फेकी के' मैया
अहो बोलो न दादा हो तुरत कहिने भगाबै छै।

पुजै छै तीज कारवाँ चौथ ई टोला मुहल्ला के
मगर मैया से' पूछै छी त कानी के कनाबै छै।


छाती म उठै हिलोर  
अंगिका गीत

जब हुयै साँझ स भोर
अरे रे रे रे रे हुल्कै लाल इनोर
चिडैयाँ नाचै छै....

अधरा ल' मांटी चालै छै
बिन खोता चुनमुन पालै छै
दाना के बदला कंकड़ से'
पेटो के खद्धा ढालै छै,
सूरज के लागी गोड़
मनाबै अहिनें र्हे इनोर
चिडैयाँ नाचै छै....।

धरती के सेवा घरम लगै
करनी देखी क सरम लगै
आधन के' खलबल पानी से'
आँखी के पानी गरम लगै,
छाती म उठै हिलोर
सुनी जब चोर मचाबै शोर
चिडैयाँ कानै छै...।
...
कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
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लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

1. गजल  ( मुख्य पेज पर जायें -  bejodindia.in  /  हर 12 घंटे पर देखते र हें -  FB+ Bejod India ) लौटी क आबै छै फँसलो बिहा...

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