Friday 6 April 2018

सुधीर कुमार प्रोग्रामर की अंगिका गज़लें

अंगिका गजल / सुधीर कुमार प्रोग्रामर  
मफाईलुन x 4



( शहीद रो चार साल के बेटा के लोरैलो प्रश्न ) : 


कहै दादा सॅ इक पोता, कि बाबू याद आबै छै
कहींने नें हमर मैया, अबेॅ सिन्दूर लगाबै छै।


जों गहलै छै कभी कौवा, तेॅ ढेला फेंकी केॅ मैया
अहो बोलोॅ न हो दादा, तुरत कहिनें भगाबै छै।


खनाखन हाँथ मेॅ चूड़ी, बजै छै रोज काकी केॅ
हमर मैया के हांथों मेॅ, अहो मठिया पिन्हाबै छै।


पुजै छै तीज, करवाँ-चैथ ई टोला मुहल्ला केॅ
मगर मैया सॅ पूछै छी तेॅ कानी कॅ कनाबै छै।


बथानी भैंस नै बकरी, न कोनोॅ गाय किल्ला मेॅ
मगर कींनी केॅ पाथा-भर दही कहिनें जमाबै छै।



जिनगी के भोर : अंगिका - गीत
......
टुकुर टुकुर ताके छै सरंगो के ओर
हमरो विधाता छै एतना कठोर।


पेटो के पटरी पर ससरे छै रेल
हमरे अलोधन पर टिकलो छै खेल
आँखी से सुसुम-सुसुम टपकै छै लोर
हमरो विधाता ......


हमरे सुखौतो' पे चुयै छै लेर
कमियां कमासुत के फेरे पर फेर
सुख्खी के पपड़ी छै धरती के ठोर
हमरो विधाता......


सीमा पर सीझै छै टुह-टुह जवान
मस्ती में झुमै छै कुर्सी भगवान
कांखी तर दाबने छै जिनगी के भोर
हमरो विधाता.....
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सुधीर कुमार प्रोग्रामर की कविताओं का लिंक: 



लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

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