Saturday 14 July 2018

खेल बिगड़लो' कक्का हो - कैलाश झा किंकर की अंगिका गज़लें

दू गो अंगिका ग़ज़ल- कैलाश झा किंकर


1. खेल बिगड़लो' कक्का हो




खेल बिगड़लो' कक्का हो 
कत्ते खैभो धक्का हो 


गाँव-घरो' के चाल-चलन
देखी हक्का-बक्का हो 

डीह हड़पना जारी छै
केना बनतो' पक्का हो

पंचैती नै मानै छै
जाम करो' अब चक्का हो 

डेग-डेग पर मचलै छै
सगरो चोर-उचक्का हो 

क्रिकेट मे ते भारत अब
मारै चौका-छक्का हो 
...


2.  राति बितलो' छै होलै बिहान


छायाकार- प्रशान्त विप्लवी / प्रशान्त विप्लवी का सोशल साइट

राति बितलो' छै होलै बिहान
लाल भेलै सगर आसमान जागि गेलै चिड़ैयाँ तमाम खेत चललो' छै अपनो' किसान सौ'न-भादो' के' भरलो' तड़ाग भोर होतें शुरू छै सनान नोन- रोटी के चिन्ता सताय काम पर आब चललै जवान अंग देशो' के' उमगित बयार अंगिका के' बढ़ाबै गुमान फेनु वर्षा के' ऐलै फुहार जाड़ आबै के' आहट सुजान !
........

कवि- कैलाश झा किंकर
कवि-परिचय: कैलाश झा किंकर अंग पत्रिका कौशिकी के सम्पादक हैं और पेशे से शिक्षक हैं और वर्तमान में अंगिका के अति-लोकप्रिय कवियों में से हैं. ये हिन्दी में भी अच्छी कविताएँ/ गज़ल  लिखते हैं और सबसे अधिक सक्रिय रचनाकारों में से हैं जो वर्तमान में खगड़िया (बिहार) में रह रहे हैं. 

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