दू गो अंगिका ग़ज़ल- कैलाश झा किंकर
1. खेल बिगड़लो' कक्का हो
गाँव-घरो' के चाल-चलन
देखी हक्का-बक्का हो
डीह हड़पना जारी छै
केना बनतो' पक्का हो
पंचैती नै मानै छै
जाम करो' अब चक्का हो
डेग-डेग पर मचलै छै
सगरो चोर-उचक्का हो
क्रिकेट मे ते भारत अब
मारै चौका-छक्का हो ।
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2. राति बितलो' छै होलै बिहान
राति बितलो' छै होलै बिहान
लाल भेलै सगर आसमान
जागि गेलै चिड़ैयाँ तमाम
खेत चललो' छै अपनो' किसान
सौ'न-भादो' के' भरलो' तड़ाग
भोर होतें शुरू छै सनान
नोन- रोटी के चिन्ता सताय
काम पर आब चललै जवान
अंग देशो' के' उमगित बयार
अंगिका के' बढ़ाबै गुमान
फेनु वर्षा के' ऐलै फुहार
जाड़ आबै के' आहट सुजान !
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कवि- कैलाश झा किंकर
कवि केँ लिंक- कैलाश झा किंकर के सोशल साइट का लिंक
कवि-परिचय: कैलाश झा किंकर अंग पत्रिका कौशिकी के सम्पादक हैं और पेशे से शिक्षक हैं और वर्तमान में अंगिका के अति-लोकप्रिय कवियों में से हैं. ये हिन्दी में भी अच्छी कविताएँ/ गज़ल लिखते हैं और सबसे अधिक सक्रिय रचनाकारों में से हैं जो वर्तमान में खगड़िया (बिहार) में रह रहे हैं.
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