करिया दाग लगाबो नय
हे हो भूख मेटाबै वाला, पेट के आग धधाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।
कल्पै माय कटोरा लेने, पेट पकड़ने सेहरी पर
टूक टूक ताके छै रोटी ले, विश्व बैंक के देहरी पर
सत्तर साल के आजादी में, जरलो साग बनाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।
सीमा पर टुह-टूह रंग बेटा, टटका लहू जराबै छै
बड़का के रक्षा में छोटका, रोजे-रोज मराबै छै
जोड़ घटाव गुणा सब सिखलों, उल्टा भाग पढाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी में करिया दाग लगाबो नय।
विदेशी हर माल पे कीमत साठ गुणा सटबाबै छै
हमरा पटियाबै के लेली कूपन भी बटबाबै छै
बापू के चरखा बोलै, चटखा के राग भुलाबो नय
गाँधी के उजरो पगड़ी पर करिया दाग लगाबो नय।
हमरा पेरी के आफिस के, बाबू तेल चुआबै छै
एक काम फ़रियाबै खातिर, साले-साल झुलाबै छै
बहिरा बोली आफिसर के, बिषधर नाग बनाबो नय
गाँधी के उजरो धरती पर करिया दाग लगाबो नय।
अंगिका गजल
सुनो' बच्चे गजल छै
मगर अच्छे गजल छै
बहर के चोंच छोटो'
लगै कच्चे गजल छै
कहै हुलसी भतीजी
हमर चच्चे गजल छै
हकारो' झूठ के नय
अहो सच्चे गजल छै
हलां खोपा गुथाबो
पुरा लच्छे गजल छै।
अंगिका गजल
कहै दादा स' इक पोता कि बाबू याद आबै छै
कहीने ने हमर मैया अहो' सिन्दूर लगाबै छै।
खनाखन हाथ में चूड़ी बजै छै रोज काकी के
हमर मैया के हांथो में अहो मठिया सुहाबै छै।
जों गहलै छै कभी कौआ ते ढेला फेकी के' मैया
अहो बोलो न दादा हो तुरत कहिने भगाबै छै।
पुजै छै तीज कारवाँ चौथ ई टोला मुहल्ला के
मगर मैया से' पूछै छी त कानी के कनाबै छै।
छाती म उठै हिलोर
अंगिका गीत
जब हुयै साँझ स भोर
अरे रे रे रे रे हुल्कै लाल इनोर
चिडैयाँ नाचै छै....
अधरा ल' मांटी चालै छै
बिन खोता चुनमुन पालै छै
दाना के बदला कंकड़ से'
पेटो के खद्धा ढालै छै,
सूरज के लागी गोड़
मनाबै अहिनें र्हे इनोर
चिडैयाँ नाचै छै....।
धरती के सेवा घरम लगै
करनी देखी क सरम लगै
आधन के' खलबल पानी से'
आँखी के पानी गरम लगै,
छाती म उठै हिलोर
सुनी जब चोर मचाबै शोर
चिडैयाँ कानै छै...।
...
कवि - सुधीर कुमार प्रोग्रामर
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