Thursday 8 November 2018

दीवाली - कैलाश झा किंकर रचित अंगिका गीत

दीवाली


सबके' घर मे दीवाली छै
हमरो' घो'र दीवाला छै 
हमर दीया हुक्की पर 
सगरो' दीपो' के 'माला छै ।

हम्मर छोटका छौरा ऐलै
दौड़ल-दौड़ल हमरो' पास
कपड़ा-लत्ता और पटाखा
दैलियै नै से बड़ा उदास
बिगड़ल छथनी लक्ष्मी जी
ते' हमर फकीरी आला छै।

की कहियो' हम घो'र के' किस्सा
विपदा हमरो' भारी छै
केना करबै घो'र के' लक्ष्मी
चौकैठ छै न केबारी छै
ऐबो' करथिन ते' घुरियै जैथिन
हमरा कोनो ताला छै।

देखै छियै हमरो' सन-सन 
और बहुत सन लोग छै
सब्भे दिन से' इहे' गरीबी 
बड़का भारी रोग छै
ओकरा सुख से नींद उड़ल छै
हमरा दुख से पाला छै ।

हुसलै फेनू इहो दीवाली
लाबो' हुक्का-पाती दे'
संठी से' उकिऐयै आबै'
अबकी ई सुकराती के'
लक्ष्मी जे लेबे' से ले' ले'
हमर दरिद्री केबाला छै।
......
कवि- कैलाश झा किंकर
कवि के लिंक- यहाँ क्लिक कीजिए
कवि परिचय- श्री कैलाश झा किंकर जी अंगिका के वर्तमान शीर्ष कवियों में से हैं. ये हिन्दी के भी अच्छे कवि हैं.
कौशिकी' के सम्पादक हैं. पेशे से अध्यापक हैं और खगड़िया में रहते हैं. इन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं. 


Monday 30 July 2018

अप्पन डफली अप्पन राग / कैलाश झा किंकर रचित अंगिका गज़ल

अंगिका ग़ज़ल
एमएसकेएम द्वारा और नितेश कुमार द्वारा निर्देशित नाटक "घुग्घू" के एक दृष्य /  यहाँ क्लिक कीजिए


अप्पन डफली अप्पन राग
छप्पर पर बोलै छै काग 

भाय के' हिस्सा हड़पै भाय 
ऊपर- ऊपर छै अनुराग 

जहरीला बिक्के छै दूध
जहरीले छो' सब्जी-साग 

धन-दौलत के' खातिर आय
लोग बनल छै गेहुँअन -नाग 

घुसखोरी के राह बनाय
पटना,दिल्ली लगबै लाग 

भैंसा-साँढ़ झगड़लै रात
उजड़ल-पुजरल लागै बाग 

धनिया काने-बिलखै रोज
पास-पड़ोसी मनबै फाग 

गाल बजाबै साँझ-बिहान
झलकै छै दामन मे' दाग।
.........
कवि- कैलाश झा किंकर
स्वत्वाधिकार - कैलाश झा किंकर

कवि- कैलाश झा किंकर




Saturday 21 July 2018

कहाँ जैभो डगर सुनसान छै - अंगिका गज़ल / कैलाश झा किंकर

ग़ज़ल
कैलाश झा किंकर
  कहाँ जैभो डगर सुनसान छै 
सगर वर्षा पड़ै, तूफान छै

गिरै ठनका ते' हहरै छै जिया
डरें अँचरा छुपल संतान छै 

यें अन्हरिया के मारल राह मे
कहीं जाना कहाँ आसान छै 

बहै रस्ता पे' पानी डाँर तक
कहीं गड्ढ़ा कहीं चट्टान छै

नदी उमड़ी के' तोड़ै बाँध के
बड़ी चिन्ता मे हिन्दुस्तान छै।



  गीतिका-1
कैलाश झा किंकर

उगै छै यहाँ रोज दिनकर सबेरे 
जगाबै  चिड़ैयाँ के' चह-चह सबेरे

बहै छै बयारो' उषाकाल मे जब
फुलैलो' बगीचा मे मह-मह सबेरे 

नुकैलो' छै कोयल परैलो' पपीहा
पहुँचलो' छै कौआ जे दल-बल सबेरे

पढ़ै ले' मिलै जे सुखद बात लिखलो'
ते' अखबार से' मो'न गदगद सबेरे 

सुखद दिन के' शुरुआत चाहै छै सब्भे
जगै छै सुयश लेलि किंकर सबेरे



 गीतिका-2

कैलाश झा किंकर

अन्हरिया- इजोरिया मे बीतै छै जिनगी
सुखो' मे दुखो' मे पसीझै छै जिनगी

समाजो' के' एहनो' गढ़ल ताना-बाना
कियारी-कियारी मे सीझै छै जिनगी 

पता नै कहाँ भूख दुनिया के' मिटतै
कली-फूल सब्भे के' छीनै छै जिनगी 

कते ताकियै हम सरंगो' के' सदिखन
न हारै छै कखनो नै जीतै छै जिनगी

सगर देख पसरल समस्या के' बदरी
बनल नकचढ़ी अब ते' खीझै छै जिनगी
.........
कवि- कैलाश झा किंकर
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Saturday 14 July 2018

खेल बिगड़लो' कक्का हो - कैलाश झा किंकर की अंगिका गज़लें

दू गो अंगिका ग़ज़ल- कैलाश झा किंकर


1. खेल बिगड़लो' कक्का हो




खेल बिगड़लो' कक्का हो 
कत्ते खैभो धक्का हो 


गाँव-घरो' के चाल-चलन
देखी हक्का-बक्का हो 

डीह हड़पना जारी छै
केना बनतो' पक्का हो

पंचैती नै मानै छै
जाम करो' अब चक्का हो 

डेग-डेग पर मचलै छै
सगरो चोर-उचक्का हो 

क्रिकेट मे ते भारत अब
मारै चौका-छक्का हो 
...


2.  राति बितलो' छै होलै बिहान


छायाकार- प्रशान्त विप्लवी / प्रशान्त विप्लवी का सोशल साइट

राति बितलो' छै होलै बिहान
लाल भेलै सगर आसमान जागि गेलै चिड़ैयाँ तमाम खेत चललो' छै अपनो' किसान सौ'न-भादो' के' भरलो' तड़ाग भोर होतें शुरू छै सनान नोन- रोटी के चिन्ता सताय काम पर आब चललै जवान अंग देशो' के' उमगित बयार अंगिका के' बढ़ाबै गुमान फेनु वर्षा के' ऐलै फुहार जाड़ आबै के' आहट सुजान !
........

कवि- कैलाश झा किंकर
कवि-परिचय: कैलाश झा किंकर अंग पत्रिका कौशिकी के सम्पादक हैं और पेशे से शिक्षक हैं और वर्तमान में अंगिका के अति-लोकप्रिय कवियों में से हैं. ये हिन्दी में भी अच्छी कविताएँ/ गज़ल  लिखते हैं और सबसे अधिक सक्रिय रचनाकारों में से हैं जो वर्तमान में खगड़िया (बिहार) में रह रहे हैं. 

Friday 6 April 2018

सुधीर कुमार प्रोग्रामर की अंगिका गज़लें

अंगिका गजल / सुधीर कुमार प्रोग्रामर  
मफाईलुन x 4



( शहीद रो चार साल के बेटा के लोरैलो प्रश्न ) : 


कहै दादा सॅ इक पोता, कि बाबू याद आबै छै
कहींने नें हमर मैया, अबेॅ सिन्दूर लगाबै छै।


जों गहलै छै कभी कौवा, तेॅ ढेला फेंकी केॅ मैया
अहो बोलोॅ न हो दादा, तुरत कहिनें भगाबै छै।


खनाखन हाँथ मेॅ चूड़ी, बजै छै रोज काकी केॅ
हमर मैया के हांथों मेॅ, अहो मठिया पिन्हाबै छै।


पुजै छै तीज, करवाँ-चैथ ई टोला मुहल्ला केॅ
मगर मैया सॅ पूछै छी तेॅ कानी कॅ कनाबै छै।


बथानी भैंस नै बकरी, न कोनोॅ गाय किल्ला मेॅ
मगर कींनी केॅ पाथा-भर दही कहिनें जमाबै छै।



जिनगी के भोर : अंगिका - गीत
......
टुकुर टुकुर ताके छै सरंगो के ओर
हमरो विधाता छै एतना कठोर।


पेटो के पटरी पर ससरे छै रेल
हमरे अलोधन पर टिकलो छै खेल
आँखी से सुसुम-सुसुम टपकै छै लोर
हमरो विधाता ......


हमरे सुखौतो' पे चुयै छै लेर
कमियां कमासुत के फेरे पर फेर
सुख्खी के पपड़ी छै धरती के ठोर
हमरो विधाता......


सीमा पर सीझै छै टुह-टुह जवान
मस्ती में झुमै छै कुर्सी भगवान
कांखी तर दाबने छै जिनगी के भोर
हमरो विधाता.....
--

सुधीर कुमार प्रोग्रामर की कविताओं का लिंक: 



Saturday 3 March 2018

गइयै कोन उछाही मे / अंगिका कविता - कैलाश झा किंकर

अंगिका ग़ज़ल
गइयै कोन उछाही मे 
गाय बिकल चरवाही मे

दोसर कोनो काम करब
की रक्खल हरवाही मे 

हिनका- हुनका की कहियै
दुनियें छै खरखाही मे 

मुद्दै-मुद्दालय ठामे
मरलै लोग गवाही मे 

गत्तर-गत्तर टूटै छै
रहियै घो'र उड़ाही मे 

केना पहुँचियो' बाबा हो 
जाम लगल भिड़ियाही मे ।
.....
कवि- कैलाश झा किंकर



फगुआ के' रंग में लागै छै दुनिया फगुऐलै / फगुआ झूमर - कैलाश झा किंकर

फगुआ झूमर


फगुआ के' रंग में लागै छै दुनिया फगुऐलै

हम्मर भैया के कनिया फगुऐलै



भैया सुतल छै बगले में लेकिन चैट-चैट
खेलै भौजी अधरतिया चैट-चैट



चढ़लै जे फागुन भौजी करै छै मह-मह-मह
महकै घोरो'-दुअरिया मह-मह-मह 



भरलो' उमंग से' रँगलो'छै भौजी फगुआ मे
भैया ताकै छै सुरतिया फगुआ मे



शिक्षा-साहित्य से' उमगित खगड़़िया हँस्सै छै
नाची-झूमी के' खगड़़िया हँस्सै छै।
.....
कवि- कैलाश झा किंकर









लौटी क आबै छै फँसलो बिहारी / गज़ल, गीत और दोहा - एस. के प्रोग्रामर

1. गजल  ( मुख्य पेज पर जायें -  bejodindia.in  /  हर 12 घंटे पर देखते र हें -  FB+ Bejod India ) लौटी क आबै छै फँसलो बिहा...

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