दीवाली
सबके' घर मे दीवाली छै
हमरो' घो'र दीवाला छै
हमर दीया हुक्की पर
हमर दीया हुक्की पर
सगरो' दीपो' के 'माला छै ।
हम्मर छोटका छौरा ऐलै
दौड़ल-दौड़ल हमरो' पास
कपड़ा-लत्ता और पटाखा
दैलियै नै से बड़ा उदास
बिगड़ल छथनी लक्ष्मी जी
ते' हमर फकीरी आला छै।
की कहियो' हम घो'र के' किस्सा
विपदा हमरो' भारी छै
केना करबै घो'र के' लक्ष्मी
चौकैठ छै न केबारी छै
ऐबो' करथिन ते' घुरियै जैथिन
हमरा कोनो ताला छै।
देखै छियै हमरो' सन-सन
और बहुत सन लोग छै
सब्भे दिन से' इहे' गरीबी
बड़का भारी रोग छै
ओकरा सुख से नींद उड़ल छै
हमरा दुख से पाला छै ।
हुसलै फेनू इहो दीवाली
लाबो' हुक्का-पाती दे'
संठी से' उकिऐयै आबै'
अबकी ई सुकराती के'
लक्ष्मी जे लेबे' से ले' ले'
हमर दरिद्री केबाला छै।
......
कवि- कैलाश झा किंकर
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कवि परिचय- श्री कैलाश झा किंकर जी अंगिका के वर्तमान शीर्ष कवियों में से हैं. ये हिन्दी के भी अच्छे कवि हैं.
कौशिकी' के सम्पादक हैं. पेशे से अध्यापक हैं और खगड़िया में रहते हैं. इन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं.
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