ग़ज़ल
कैलाश झा किंकर
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कहाँ जैभो डगर सुनसान छै
सगर वर्षा पड़ै, तूफान छै
गिरै ठनका ते' हहरै छै जिया
डरें अँचरा छुपल संतान छै
यें अन्हरिया के मारल राह मे
कहीं जाना कहाँ आसान छै
बहै रस्ता पे' पानी डाँर तक
कहीं गड्ढ़ा कहीं चट्टान छै
नदी उमड़ी के' तोड़ै बाँध के
बड़ी चिन्ता मे हिन्दुस्तान छै।
गीतिका-1
कैलाश झा किंकर
जगाबै चिड़ैयाँ के' चह-चह सबेरे
बहै छै बयारो' उषाकाल मे जब
फुलैलो' बगीचा मे मह-मह
सबेरे
नुकैलो' छै कोयल परैलो' पपीहा
पहुँचलो' छै कौआ जे दल-बल
सबेरे
पढ़ै ले' मिलै जे सुखद बात
लिखलो'
ते' अखबार से' मो'न गदगद सबेरे
सुखद दिन के' शुरुआत चाहै छै
सब्भे
जगै छै सुयश लेलि
किंकर सबेरे।
गीतिका-2
कैलाश झा किंकर
अन्हरिया-
इजोरिया मे बीतै छै जिनगी
सुखो' मे दुखो' मे पसीझै छै
जिनगी
समाजो' के' एहनो' गढ़ल ताना-बाना
कियारी-कियारी मे
सीझै छै जिनगी
पता नै कहाँ भूख
दुनिया के' मिटतै
कली-फूल सब्भे के' छीनै छै जिनगी
कते ताकियै हम
सरंगो' के' सदिखन
न हारै छै कखनो
नै जीतै छै जिनगी
सगर देख पसरल
समस्या के' बदरी
बनल नकचढ़ी अब ते' खीझै छै जिनगी ।
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